“गोरा” उपन्यास रवीन्द्रनाथ टैगोर की मशहूर और प्रमुख कृति है। यह उपन्यास 1909 में प्रकाशित हुआ था और टैगोर की विशेष विचारधारा, सामाजिक और धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। “गोरा” कहानी एक युवा लड़के गोरा के बारे में है, जो अपने आप को भगवान के अवतार के रूप में मानता है।
गोरा एक ब्रह्मचारी है जो अपने समाज में विभिन्न मुद्दों को समझने की कोशिश करता है। उसे धार्मिक और सामाजिक न्याय के प्रति गहरी संवेदनशीलता होती है और वह समानता, समाजसेवा और न्याय की महत्त्वाकांक्षा रखता है। गोरा धार्मिक सन्नाटे में एक ब्राह्मण बालिका का सहारा बनता है और उसे प्रेरणा देता है कि वह अपनी शिक्षा के लिए संघर्ष करे और अपने अधिकारों की रक्षा करे।
“गोरा” में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने समाज की धार्मिकता, पारंपरिकता और स्त्री सशक्तिकरण के मुद्दों पर विचार किया है। उपन्यास में उच्चतम विचारों, स्वतंत्रता के प्रति प्रतिष्ठा के साथ सामाजिक सुधारों और धर्मिक मान्यताओं की पुनर्विचार को प्रोत्साहित किया गया है। गोरा उपन्यास सामाजिक एवं नैतिक मुद्दों, व्यक्तिगत स्वतंत्रता, धर्म और मानवता के प्रति टैगोर की चिंताओं का एक प्रतीक है।
“गोरा” एक महत्त्वपूर्ण उपन्यास है जिसमें आप महान बंगाली लेखक रवीन्द्रनाथ टैगोर की विचारधारा, साहित्यिक कला, और समाजशास्त्र का अद्वितीय अनुभव कर सकते हैं।
लेखक परिचय: रवीन्द्रनाथ टैगोर
रवीन्द्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) भारतीय साहित्य के मशहूर लेखक, कवि, चिंतक, और संगीतकार थे। वे 7 मई 1861 को कोलकाता, ब्रिटिश भारत (वर्तमान भारत) में जन्मे थे और 7 अगस्त 1941 को वहीं परिनिर्वाण हुए। टैगोर ने अपने जीवनकाल में विभिन्न काव्य, गीत, नाटक, कहानी, उपन्यास, निबंध, और नौकरी तैयार की।
टैगोर को “गुरुदेव” के नाम से भी जाना जाता है और उन्हें बंगाली साहित्य की एक महान आदर्शगाथा माना जाता है। उन्होंने अपने काव्य और साहित्यिक योगदान के लिए 1913 में नोबेल पुरस्कार प्राप्त किया, जिससे वे भारतीय और विश्व साहित्य के प्रशंसित लेखकों में से एक बने।
टैगोर की रचनाओं में संगीत और काव्य का एक सजीव मेल दिखता है। उनके गीत आदर्शवादी, भावनात्मक और साहसिक होते हैं, जिन्हें उन्होंने स्वयं संगीतित किया था। टैगोर के लेखन में प्रकृति, प्रेम, धर्म, स्वतंत्रता, और मानवता के मुद्दे पर विचारशीलता प्रमुख होती है।
टैगोर के मशहूर लेखन के उदाहरण में “गीतांजलि” (Gitanjali), “गोरा” (Gora), “कबुलीवाला” (Kabuliwala), “घरेबाहरी” (Ghare-Baire), “चोकरबाज़” (Chokher Bali), और “शेष लेखा” (Shesher Kobita) शामिल हैं। टैगोर की रचनाएँ विश्व साहित्य के महत्त्वपूर्ण हिस्से मानी जाती हैं और उनका लेखन उदारता, सौंदर्य, और आध्यात्मिकता के प्रतीक है।
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