बुक्स वर्सेस गूगल यह टाइटल पढ़ने और सुनने में थोड़ा थोड़ा अटपटा और अजीब सा लगता है लेकिन इन दोनों शब्दों में बहुत बड़ा अंतर है और इस अंतर को ही मैंने इस लेख के माध्यम से इश्पष्ट करने का प्रयास किया है।
बुक्स वर्सेस गूगल


पुस्तकों को पढ़ने से नॉलेज बढ़ता है जबकि गूगल से नॉलेज को बढ़ाना पड़ता है। इसको आप दूसरे तरीके से और भी अच्छे से समझ सकते हो जैसे कि रीडिंग करने से जो नॉलेज मिलेगा वह स्वचालित नॉलेज कहलायेगा और गूगल से जो नॉलेज आप हासिल करोंगे वह नॉलेज मैनुअली नॉलेज कहलायेगा। यहां मैंने दो शब्दो का उपयोग किया है पहला है स्वचालित नॉलेज (automatic knowledge ) और दूसरा है मैनुअली नॉलेज (manually knowledge) । अब आप सोच रहे होंगे कि प्रिंट माध्यम से प्राप्त नॉलेज स्वचालित कैसे हो गया…….? जबकि गूगल तो एक ऑनलाइन प्लेटफार्म है और किसी भी प्रश्नो के उत्तर सेकण्ड्स में देता है तो फिर गूगल से प्राप्त नॉलेज मैनुअली कैसे हुआ……. ?. इस सवाल का बहुत ही आसान सा जवाब है कि जब आप रीडिंग कर रहे होते है तो उस पर्टिकुलर बुक,जर्नल,पत्रिका या समाचार पत्र में उपलब्ध या दी गयी सम्पूर्ण जानकारी /सूचना या तथ्य आदि से आप न चाहते हुए भी परिचित हो जाते है। आपके दिमाग में सूचनाएँ स्वतः ही घर कर जाती है इसलिए रीडिंग से नॉलेज की प्राप्ति एक स्वचालित प्रकिया है। आप रीडिंग करते रहिये भिन्न भिन्न प्रकार का डाटा आपके दिमाग में अपलोड होता रहेगा और आपको अपडेट करता रहेगा किन्तु गूगल में ऐसा नहीं होता है। गूगल कभी भी किसी यूजर को अपने आप कोई भी सूचना ,जानकारी या तथ्य नहीं देता है। यूजर गूगल से जितना पूछेगा वह उतना ही बतायेगा बल्कि उससे रिलेटेड बहुत सी सूचनायें आपके कंप्यूटर या मोबाइल स्क्रीन पर दिखाकर आपको और भ्रमित कर देगा।इसलिए गूगल से इनफार्मेशन कलेक्ट करना या अपने नॉलेज को बढ़ाना एक मैनुअली प्रोसेस है।
गूगल और प्रिंट माध्यम जैसे : बुक्स,जर्नल्स और पत्र -पत्रिकाएं आदि के बीच के अंतर को मै यहां एक बहुत ही अच्छे Example से समझा रहा हूँ।
मानलो कि आप भोपाल में रहते हो और आपकी 10 लोगो की एक टीम है जिसको की दिल्ली में एक सेमिनार अटेंड करने जाना है। अब आप दिल्ली जाने के लिए कौन से साधन का इस्तेमाल करोंगे। आपके पास हवाई जहाज, ट्रेन,बस या फिर अपने स्वयं के वाहन का विकल्प मौजूद है।आपकी टीम निर्णय लेती है कि टीम के कुछ लोग एयर मार्ग से और कुछ लोग सड़क मार्ग से दिल्ली जायेंगे। दोनों समूह के लोग अपनी अपनी यात्रा शुरू करते है।
पहले समूह के लोग अपनी यात्रा के लिए हवाई मार्ग का चुनाव करते है और सीधे एयरपोर्ट जाते है।अपनी फ्लाइट पकड़ते है और एक घंटे के अंदर दिल्ली पहुँच जाते है। वहां पर ओ लोग सेमिनार अटैंड करते है और उसी चेनल से वापस भोपाल आ जाते है। उनका ये काम बड़ी ही तीव्र गति से और बगैर किसी रूकावट के संपन्न होता है।
दूसरे समूह के लोग अपनी यात्रा सड़क मार्ग से शुरू करते है 12 से 15 घंटे में दिल्ली पहुँचते है सेमिनार अटेंड करते है और उसी चेनल से वापस भोपाल आ जाते है।
यहां पर दो समूह है दोनों का एक ही उद्देश्य है भोपाल से दिल्ली जाकर सेमिनार अटेंड करना किन्तु दोनों टीमों को मिलने वाले ज्ञान में अंतर रहेगा। हवाई जहाज से जाने वाली टीम को सिर्फ सेमिनार का ही ज्ञान मिलेगा क्योंकि उस टीम का पूरा फोकस सेमिनार पर ही रहेगा उनको और किसी भी बात से कोई मतलब नहीं रहेगा और ना ही उसे किसी प्रकार का कोई मौका मिलेगा।
जबकि दूसरी टीम जो कि सड़क मार्ग से दिल्ली जा रही है और उसका भी वही ऑब्जेक्ट है दिल्ली जाकर के सेमिनार अटेंड करना लेकिन पहली टीम के मुकाबले में दूसरी टीम को ज्यादा नॉलेज मिलेगा। इसका कारण है इस टीम का सड़क मार्ग का चुनाव। जब टीम भोपाल से अपनी यात्रा शुरू करेगी तो उसे भोपाल से दिल्ली तक में अनेको स्थान मिलेंगे जिनके बारे में उन लोगो को न चाहते हुए भी उन स्थानों के बारे में जानना पड़ेगा जैसे कि सबसे पहले साँची आएगा जो कि एक ऐतिहासिक स्थान है। उसके आगे चलने पर झांसी ,ग्वालियर ,आगरा और मथुरा आदि शहर से टीम के सदस्यों का अनौपचारिक रूप से परिचय होगा। टीम के लोग इन शहरो के बारे में और रास्ते में पड़ने वाले अन्य स्थानों के बारे में भी जानते हुए अपनी यात्रा को पूरा करेंगे। इस टीम के सभी सदस्यों को अपनी यात्रा में इस काम के लिए कोई अतिरिक्त प्रयास नहीं करने है। उनको ये नॉलेज चलते हुए ,चाय पीते हुए या फिर खाना खाते हुए भी मिल जायेगा।
जब हम इन दोनों टीमों के द्वारा दिए गए example को गूगल और बुक ( प्रिंट माध्यम ) के परिप्रेच्छ में जोड़कर देखते है तो ओवरआल एक निष्कर्ष निकलता है कि गूगल से नॉलेज आपको वैसे ही पिन पॉइंटेड और फ़ास्ट मिलता है जैसे कि हवाई मार्ग से दिल्ली जाने वाले को। दूसरी ओर सड़क या रेलमार्ग से दिल्ली जाने वाली टीम को भिन्न भिन्न प्रकार का और विविधता लिए हुए नॉलेज मिलेगा जबकि दोनों ही टीमों का ऑब्जेक्ट एक ही है। दोनों टीमों के नॉलेज में अंतर उनके द्वारा यूज़ किये गए साधन /माध्यम की वजह से आया है। गूगल से कोई इनफार्मेशन लेना हवाई यात्रा करने के समान है जबकि प्रिंट माध्यम के जरिये किसी भी इनफार्मेशन की जानकारी लेना या अपने नॉलेज को बढ़ाना सड़क मार्ग से यात्रा करने जैसा है। गूगल हमें वही बताता है जो उससे आप पूंछ रहे है। जो आपने नहीं पूंछा है ओ गूगल कभी भी नहीं बतायेगा। जबकि प्रिंट माध्यम का यूज़ आपको बहुत सी जानकारियों के बारे में बतायेगा।आपके ना चाहते हुए भी आपको बहुत सी सूचनाएं देते रहेगा और अपडेट करते रहेगा। इसलिए बुक्स,जर्नल्स,पत्रिकाएं,समाचार पत्र आदि पड़ते रहिये।
इसके अलावा गूगल वर्सेस रीडिंग में कुछ और भी अंतर है।
- डिंग करने से आपकी कल्पनाशीलता और सोच का दायरा बढ़ता है जबकि गूगल करने से ये दोनों ही कम होते है।
- जैसे कि रीडिंग करने से आपका शब्दों का उच्चारण बेहतर होता है जबकि गूगल करने से ऐसा कुछ नहीं होता है।
- रीडिंग करने से तनाव कम होता है जबकि ज्यादा देर तक गूगल करने से तनाव बढ़ता है।
- रीडिंग करने से आपकी जिज्ञाषा बढ़ती है जबकि गूगल करने से ऐसा नहीं होता है।
- डिंग आप कहीं पर भी किसी भी समय और किसी भी परिश्थिति में कर सकते हो लेकिन गूगल के साथ ऐसा नहीं है। गूगल के लिए आपके पास बिजली और इंटरनेट कनेक्शन होना चाहिए और उसके साथ ही नेटवर्क भी जरुरी है।
- किसी भी रीडिंग मटेरियल्स का आप कही पर भी सन्दर्भ दे सकते हो और यह सभी जगह पर acceptable रहता है किन्तु गूगल के साथ ऐसा नहीं है गूगल का संदर्भ ज्यादा acceptable नहीं है।
- रीडिंग से concentration बढ़ता है जबकि गूगल से inconstancy बढ़ती है।
- रीडिंग से mental stress कम होता है जबकि गूगल के साथ ज्यादा समय बिताने पर mental stress बढ़ता है।
- से आपके अंदर एक पॉजिटिव सोच डेवलप होती है जबकि गूगल सर्च करने से ऐसा नहीं होता है।
- रीडिंग से आपके अंदर एक पॉजिटिव सोच डेवलप होती है जबकि गूगल सर्च करने से ऐसा नहीं होता है।
- जिसको भी पड़ना आता है ओ व्यक्ति बड़े ही आराम से पड़ सकता है लेकिन ऐसा प्रत्येक व्यक्ति गूगल में सर्च नहीं कर सकता।
- स्किल डेवलपमेंट और व्यक्ति की एनालिटिकल पावर पड़ने से ही increase होती है गूगल सर्चिंग से नहीं।