“गोसाई बगान का भूत” कहानी में एक पुराने बगीचे में गोसाई नामक एक भूत बसता है। वह अपनी बगीचे की सुरक्षा करता है और बगीचे के रखवाली करता है। बगीचे में एक पुरानी और विशाल बंगला भी होती है, जहां भूत अपना आवास बनाता है। लोग उस बंगले को भूतों का निवास स्थान मानते हैं और वहां रहने से डरते हैं।
एक दिन, एक विदेशी परिवार उस बगीचे में रुकता है। उनके बच्चे सुनते हैं कि गोसाई बगान में एक भूत रहता है और वे रात उस बंगले में बिताने का निर्णय लेते हैं। रात में, जब वे बंगले में ठहरने का प्रयास करते हैं, तो उन्हें भूत का दर्शन होता है। वे भयभीत होकर भाग जाते हैं और घर वापस जाने का निर्णय लेते हैं।
अगले दिन, परिवार गोसाई से इस बारे में पूछता है और वह उन्हें सच्चाई बताता है। गोसाई बताता है कि वह भूत एक नेक आत्मा है जो बगीचे की सुरक्षा करने के लिए वहां रहता है। उसका मकसद किसी को नुकसान पहुंचाना नहीं होता है।
धीरे-धीरे, परिवार गोसाई और उसके साथियों के साथ रिश्ते बनाने शुरू करता है। उन्हें गोसाई बगान के रहस्यों के बारे में ज्ञान प्राप्त होता है और उन्हें बगीचे की सुरक्षा करने में सहायता मिलती है। इस कहानी से यह संदेश मिलता है कि हमारी भ्रमित सोच हमारी खुद की खोज के लिए रुकावट बन सकती है और हमें दूसरों के साथ संबंध बनाने और समझने का अवसर गंवा सकती है।
गोसाई बागान का भूत (सारांश)
किशोर पाठकों मे बेहद लोकप्रिय शीर्षेन्दु मुखोपाध्याय ने कई रोचक पुस्तकें लिखी हैं। उनकी नई पुस्तकों के इन्तजार में भी बड़ा मजा आता है। ऐसे ही मजेदार और रोमांचक कारनामों से भरपूर गोसाईं बागान का भूत उपन्यास एक ऐसी रोचक कृति है जो एक बार हाथ आयी नहीं कि पाठक इसे पढ़े बिना मानेंगे ही नहीं। इसमें लेखक से कई सवाल पूछे गये हैं जिनमें पहला यह था कि क्या भूत सचमुच इतने परोपकारी होते हैं ? दूसरे, भूत अगर राम नाम से इतना डरते हैं तो इस उपन्यास के एक भूत का नाम निधिराम क्यों रखा गया ? लेखक का मानना है कि नाम में राम लगाना और राम का नाम लेना दोनों अलग-अलग बातें हैं। तीसरा सवाल यह कि साँप का जहर क्या खुद साँप पर असर करता है ? अगर करता है तो राम वैद्य जी का नाम सुनकर भूत क्यों भाग जाते हैं ? वह भी तो एक नाम ही है। दरअसल वैद्य जी के नाम में विशुद्ध राम हैं। इसके आगे-पीछे कुछ भी नहीं लगा। भूतों के मन को समझना बहुत कठिन हैः कभी वे राम नाम सुनकर काँप उठते हैं तो कभी किसी राम की परवाह नहीं करते । अब अगर कोई भूत अनजाने में राम वैद्यजी का नाम ले ही ले तो हम क्या कर सकते हैं ? भूतों से भी गलती हो सकती है। मामला बड़ा पेचीदा था-इसलिए कोई फेरबदल किये बिना अपनी तमाम गड़बड़ियों के साथ यह उपन्यास सबके सामने है। अगर किसी पाठक को कहीं कोई ऐसा परोपकारी भूत मिल जाए तो सच्चाई का पता और सवालों का जवाब मिल सकता है।
लेखक परिचय:
शीर्षेन्दु मुखोपाध्याय (जन्म: 6 नवंबर 1935, कोलकाता, पश्चिम बंगाल – मृत्यु: 17 जून 2009, कोलकाता, पश्चिम बंगाल) एक प्रमुख बंगला लेखक और कवि थे। उन्हें बंगाली साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। उनके रचनाओं में कविता, काही, उपन्यास, लघुकथा, नाटक और गीत शामिल हैं।
शीर्षेन्दु मुखोपाध्याय ने अपनी लेखनी के माध्यम से सामाजिक, राजनीतिक और मानवीय मुद्दों को उजागर किया। उनकी कविताओं में विरह, प्रेम, जीवन की चुनौतियाँ और उम्मीदों का विवरण है। उनके उपन्यासों में वे विभिन्न पारिवारिक और सामाजिक संघर्षों को दर्शाते हैं और मानवीय भावनाओं को गहराते हैं। उन्होंने अपने रचनाकारी के माध्यम से बंगाली साहित्य को समृद्ध और विचारशील बनाया।
उनकी कुछ प्रमुख रचनाएं हैं:
- उपन्यास: “चौरङ्गा”, “अमर भूत”, “गोटा गुटि शंटि”, “द्विपांग्शु” आदि।
- काव्य संग्रह: “ज्योतिषी”, “प्रेमोदय”, “मेघ अरण्य”, “अंकुर”, “प्रथम प्रेम”, “अंजन तृष्णा” आदि।
शीर्षेन्दु मुखोपाध्याय को बंगाली साहित्य में उनकी महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए सम्मानित किया गया है और उन्हें साहित्यिक पुरस्कारों से नवाजा गया है।
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